Bihar Floor Test: तेजस्वी यादव का बयान सच साबित होते हुए दिख रहा है जिसमे उन्होंने कहा था कि खेला तो अब शुरु होने वाला है,क्योंकि जिस तरीके से एक दिन पहले ही जदयू(JDU) के एक मंत्री श्रवण कुमार (Sharvan Kumar) ने कहा था कि जिनको डर है उन्होंने अपने विधायकों को हैदराबाद में शिफ्ट करवा दिया है, लेकिन हमें और हमारे गठबंधन के विधायकों को किसी प्रकार का कोई डर नहीं है और इसीलिए वो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में घूम रहे हैं,
यानी साफ तरीके से श्रवण कुमार ने कांग्रेस (Congress) पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि महागठबंधन जो कि खेला करने का दावा कर रही है उल्टा वही NDA से डर रही है और अपने विधायकों को गायब कर दिया है..
‘Bihar Floor Test: बीजेपी ने विधायकों को गया पहुंचने का दिया निर्देश’
लेकिन आज खबर ये है कि कांग्रेस के बाद अब अपने आप को देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहकर दंभ भरने वाली BJP जिसपर लगातार जोड़ तोड़ की राजनीति करने का आरोप लगता रहा है, और इसके समर्थक अमित शाह (Amit Shah) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को चाणक्य बताते रहे हैं उसी BJP की बिहार इकाई तेजस्वी यादव के ऑपरेशन लालटेन से डर गई है और इसीलिए खबर यह है कि बीजेपी अपने विधायकों को 11 फरवरी तक गया भेज रही है..
BJP ने कारण देते हुए कहा है कि सभी विधायकों को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रशिक्षण देने के लिए गया भेजा जा रहा है जहां खुद गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा चुनाव को लेकर विधायकों को वर्चुअल तरीके से संबोधित करेंगे। 10 फरवरी तक इन विधायकों को गया पहुंचने के लिए कहा गया है और 11 फरवरी शाम को यह लोग वापस पटना (Patna) लौटेंगे.. लेकिन जो दलील बीजेपी की तरफ से दिया जा रहा है वह कई राजनीतिक विशेषज्ञों को पच नहीं रहा है..और वो इसके टाइमिंग को लेकर कई तरह के सवाल उठा रहे हैं..
और ऐसे में तो एक सवाल यह भी है की क्या सचमुच बिहार में ऑपरेशन लालटेन शुरू हो चुका है जिसका इशारा तेजस्वी यादव पहले ही कर चुके हैं. और अगर यह ऑपरेशन लालटेन सच में शुरू हुआ है तो वह कौन-कौन सी संभावनाएं हैं जिसमें बिहार में राजद की सरकार बनते हुए दिख रही है आज इसी मुद्दे पर बात करेंगे.
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‘RJD स्पीकर अवध बिहारी NDA सरकार के लिए संकट’
किसी भी प्रदेश में सरकार का मुखिया विधानसभा होता है और यह विधानसभा ही है जिसमें बहुमत साबित करने के लिए चुनाव करवाए जाते हैं, नीतीश कुमार ने बहुमत का हवाला देते हुए भले ही बिहार में सरकार पलट दी हो लेकिन अभी भी इस बात की संभावना है कि सरकार गिर जाए.. क्योंकि हाल ही में जो नई सरकार नीतीश कुमार ने बनाई है उसे विधानसभा (Bihar Vidhansbaha) में अपना बहुमत(Bihar Floor Test) साबित करना होगा, बिहार में 12 फरवरी से विधानसभा का सत्र शुरू होना है और ऐसे में 12 फरवरी ही वह तारीख है जब नीतीश कुमार अपने एनडीए गठबंधन की ओर से विधानसभा में बहुमत साबित करेंगे..
लेकिन इसमें दिक्कत यह है की विधानसभा के मुखिया यानी विधानसभा अध्यक्ष (Speaker) इस समय राजद के हैं जिनका नाम है अवध बिहारी चौधरी. RJD समर्थित सरकार गिरने के बाद उनके ऊपर इस्तीफा देने का दबाव तो बनाया गया था, बाकायदा उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया लेकिन उन्होंने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है।अब यह दिक्कत की बात इसलिए है क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं जिसका इस्तेमाल करके बिहार मे तख्तापलट किया जा सकता है और आरजेडी इसका भरपूर इस्तेमाल कर सकती है।
लेकिन अब सवाल ये कि अगर आरजेडी खेला करने के लिए योग्य है तो उसके साथ वाले कांग्रेस ने अपने विधायकों को हैदराबाद क्यों भेजा? इसका जवाब आपको आगे देंगे..
‘RJD के पास हैं ये 2 विकल्प’
आरजेडी के पास 2 विकल्प है. महागठबंधन के पास अभी 115 विधायक हैं और विधानसभा में 243 सीट के हिसाब से 122 विधायक महाठबंधन के पाले में होना चाहिए.. यानी महागठबंधन को सत्ता पक्ष के 7 और विधायक चाहिए.. अब या तो यहां पर जीतन राम मांझी की एंट्री हो सकती है जिनके पास चार विधायक है उसके बाद महागठबंधन को सिर्फ तीन विधायक चाहिए होगा, लेकिन अगर मांझी तैयार नहीं होते हैं तो सात विधायक जदयू या बीजेपी से तोड़ना पड़ेगा..
अब अगर विधानसभा अध्यक्ष राजद के नहीं होते तो यह काम आसान नहीं होता क्योंकि दल बदल नियम कानून के मुताबिक कम से कम दो तिहाई विधायक को एक बार किसी पार्टी को छोड़ना पड़ेगा नहीं तो उनकी विधायकी रद्द हो जाएगी. बीजेपी के पास 78 विधायक है यानी की 52 विधायक तोड़ना पड़ता, जदयू के पास 45 है यानी 30 विधायक तोड़ना पड़ता जो कि लगभग नेक्स्ट टू इंपॉसिबल है.. लेकिन चुकी विधानसभा अध्यक्ष राजद के हैं तो महागठबंधन बीजेपी या जदयू के 7 विधायकों को तोड़कर अपने में शामिल करवा सकता है.. अगर जीतन राम मांझी आते हैं तो 3 विधायक को ही तोड़ना पड़ेगा
और यह अंतिम निर्णय विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी लेंगे कि उनकी सदस्यता रहेगी या जायेगी.. और जाहिर सी बात है विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी अपनी पार्टी की साइड ही लेंगे.. और सभी 7 या 3 विधायकों को एक अलग धरा की मान्यता देकर उनकी विधायकी बचाई जा सकती है और इस प्रकार से आरजेडी अपना Floor Test में बहुमत साबित कर देगी.. और सत्ता पक्ष मुंह ताकते रह जायेगी और विडंबना तो ये है कि ये तरीका खुद बीजेपी महाराष्ट्र में अपना चुकी है।
दूसरा विकल्प ये है कि 12 तारीख को RJD अगर सत्ता पक्ष के 16 विधायकों को कुछ प्रलोभन देकर अनुपस्थित करवा देती है,तो कुल 227 विधायक ही विधानसभा में होंगे जहां बहुमत साबित करने के लिए 114 विधायक चाहिए होंगे जो कि आरजेडी आसानी से 115 विधायकों के साथ बहुमत प्राप्त कर लेगी और सत्ता पक्ष बहुमत साबित नहीं कर पाएगी क्योंकि उसके पास कुल 112 विधायक ही बचेंगे. और ये प्रलोभन देना आसान भी है क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए आरजेडी इन नेताओं के लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है और अपने अच्छे भविष्य के लिए समझौता किया जा सकता है।
‘NDA हुई सावधान,तेजस्वी बने खतरा’
पहले तो एनडीए गठबंधन के लोग तेजस्वी यादव के खेला वाले बयान को सीरियसली नहीं ले रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे Bihar Floor Test का समय नजदीक आ रहा है उसे एनडीए को भी डर लगने लगा है और उसका एकमात्र बड़ा कारण है विधानसभा अध्यक्ष का आरजेडी का सदस्य होना. और कल ही जदयू के एक मंत्री ने यह आरोप भी तेजस्वी खेमे पर लगाया था कि ये लोग लगातार ठेकेदारों को विधायकों से डील करने के लिए भेज रहे हैं।
‘कांग्रेस ने अपने विधायकों को हैदराबाद क्यों भेजा’
अब सवाल यह कि अगर राजद के पक्ष में माहौल जाने की संभावना है फिर भी कांग्रेस ने अपने विधायकों को बिहार से बाहर क्यों शिफ्ट कर दिया तो इसका जवाब यह है की कांग्रेस के केंद्र इकाई को इस बात की भनक हो गई थी कि जदयू कांग्रेस के विधायकों को अपने साथ मिलने के लिए प्रयास कर रही है , और इसलिए पहले तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने इन विधायकों को दिल्ली में मिलने के लिए बुलाया और उसके बाद इन लोगों को हैदराबाद में शिफ्ट कर दिया गया।
जदयू कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में करने की कोशिश इसलिए भी कर रही है क्योंकि ऐसा करने से वह दो मोर्चे पर सफल हो सकते हैं , पहले तो यह है कि इससे महागठबंधन को बुरे तरीके से कमजोर किया जा सकेगा, और दूसरा यह कि अगर कांग्रेस के 19 विधायक में से दो तिहाई यानी 13 विधायक जदयू के पाले में चले आते हैं तो सत्ता पक्ष में जदयू के पास 58 विधायक हो जाएगा और जदयू सत्ता में एक मजबूत स्थिति में भी रहेगी और ऐसे में जदयू के खात्मे को लेकर जो बातें चलती रहती हैं उस पर भी विराम लगाया जा सकता है,
तो यह वह तमाम बातें हैं जिसको लेकर बिहार में सत्ता परिवर्तन को लेकर अटकलें लगाई जा रही है, लेकिन यह सब उठापटक 12 फरवरी को समाप्त हो जाएगा जिस दिन विधानसभा का सत्र शुरू होगा.. उसी दिन यह भी तय होगा कि RJD का ऑपरेशन लालटेन कितना सफल रहा, तेजस्वी के बयान में कितना दम था और बिहार में सत्ता परिवर्तन होगा या नहीं. फिलहाल तो यही है कि सबकी अपनी अपनी खिचड़ी पक रही है और जीत उसकी ही मानी जाएगी जो 12 फरवरी को अपने खिचड़ी में तड़का लगा पाएगा..