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Devendra Dubey: मोतिहारी का सबसे बड़ा डॉन कैसे बन गया एक छात्र, 2 मिनट में पूरी कहानी!

Devendra Dubey full story: मोतिहारी के इंजीनियरिंग कॉलेज में कुछ ब्राह्मण जात की लड़कियों को छेड़ दिया जाता है और फिर उन लड़कियों के रिश्तेदारी में आने वाला लड़का कैसे मोतिहारी और बिहार का सबसे बड़ा डॉन बन गया… जिसे कभी पेशाब तक पीने के लिए मजबूर कर दिया गया, जो पिजिक्स ,केमिस्ट्री और मैथ पढ़ना चाहता था लेकिन शायद उसकी जिंदगी में आम इंसानों की तरह जीना नहीं लिखा गया था..जिसने बाद में कई लोगों का अपहरण किया,उनसे पैसे लूटे और अपने लोगों में उन पैसों को बांट कर विधायक भी बना,विधानसभा तक पहुंचा जिसे खुद नीतीश कुमार ने चुनाव लडने के लिए टिकट दिया था..

मोतिहारी का ये लड़का देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) के नाम से इतिहास में कुख्यात हो गया जिसने नब्बे के दशक के बिहार में ब्राह्मण vs राजपूत की एक लंबी लड़ाई लड़ा और दो सवर्ण जातियों की लड़ाई में ही एक एसपी तक को खुलेआम चैलेंज कर दिया और बकायदा उस एसपी ने उसे मरवाने के लिए कोर्ट में ही उसपर गोलियां भी चलवाई थी. आज हम आपको इसी देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) की पूरी कहानी बताएंगे, जिसके पिता खुद तो पुलिस के सिपाही थे लेकिन बेटा हालातों की वजह से क्राइम की दुनिया का जाना पहचाना नाम बन गया

‘Devendra Dubey: डॉन बनने की शुरुआत’

ये कहानी 90 के दशक के उस बिहार का है जब लालू यादव का साम्राज्य शुरू भी नहीं हुआ था..मोतिहारी के गोविंदगंज विधानसभा क्षेत्र के टिकुलिया के रहने वाले एक पुलिस कर्मचारी जलेश्वर दुबे ने अपने तीन बेटे में से सबसे छोटे देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) का एडमिशन पहले दसवीं फिर इंटर में फर्स्ट डिवीजन से पास होने के बाद मोतिहारी के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में करवाया..ताकि वो फिजिक्स, केमेस्ट्री,और मैथ पढ़कर इंजीनियर बने.. मोतिहारी के जिस इलाके में ये कॉलेज था वहां उस समय भूमिहार और खासकर राजपूतों का दबदबा हुआ करता था..इधर देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) ने कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद उसी इलाके में रहना शुरू कर दिया था, कॉलेज जाना और आना यही दिनचर्या थी..

उस बीच कॉलेज में कुछ मनचले भी थे जो आए दिन कॉलेज की लड़कियों को छेड़ दिया करते थे..एक दिन अचानक उन लोगों ने ब्राह्मण जात की लकड़ियों को छेड़ दिया,ये देवेंद्र दुबे की रिश्तेदार लगती थी,बात दुबे तक पहुंची तो खून में गर्मी उबाल मारने लगी और दुबे ने इनका विरोध कर दिया,पता चला कि ये लड़के राजपूत समाज से हैं जिनका नाम था अभय सिंह,लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह, दुबे ने विरोध तो किया लेकिन चुकी उस इलाके में इनका दबदबा था उन्होंने देवेंद्र की जमकर पिटाई कर दी,आलम ये हुआ कि ये लोग जब तब दुबे को छेड़ने लगे और दुबे विरोध करता तो उसकी पिटाई हो जाती,एक बार तो उसे बकायदा पेशाब भी पिलाया गया

‘बदला : आत्मसम्मान के बदले तीन मर्डर’

देवेंद्र का आत्मसम्मान दांव पर लग चुका था,पढ़ाई से ध्यान हट गया और अब उसके दिमाग में सिर्फ बदला घूम रहा था.उसने लोगों को जोड़ना शुरू किया,हथियार का जुगाड़ हुआ और तमाम लोग सही समय की ताक में थे ताकि बदला पूरा हो सके,साल 1989 के 21 जुलाई की तारीख तय हो गई जब तीनों से बदला ली जानी थी।अभय सिंह के पिता जमींदार थे और उनके पास एक स्कूटर था। एक दिन अभय ,लल्लू और तारकेश्वर स्कूटर से मोतिहारी के धनौती नदी पर बने एक पुल की तरफ बढ़ रहे थे, इधर दुबे अपने साथियों के साथ ओमनी कार में हथियार से लैस होकर तीनों का इंतजार कर रहा था तभी अचानक एक दूसरे से नजर मिली

अभय सिंह को लग गया कि आज कुछ गडबड होने वाला है,क्योंकि देवेंद्र दल बल के साथ मुस्तैद था..तभी अभय सिंह ने भागने के लिए रास्ता बदल दिया और पास के ही एक लड़की के पुल की तरफ स्कूटर मोड़ लिया..देवेंद्र ने तीनों का पीछा किया,लेकिन स्कूटर कुछ दूर बढ़ी ही थी कि स्कूटर का पहिया अचानक उसे पुल में फंस गया… लेकिन जब तक यह तीनों स्कूटर निकाल पाते देवेंद्र ने अपने साथियों के साथ इन तीनों को घेर लिया और फिर कई राउंड की फायरिंग चली…अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई और ये तीनों वहीं ढेर हो गए..बदला पूरा हो चुका था और ये सब खुश होकर मोतिहारी शहर की तरफ भाग गए..

देवेन्द्र दुबे

‘राजपूत इलाके में दुबे भाइयों का दबदबा’

इधर स्थानीय लोगों को जैसे ही इन तीनों के हत्या की खबर मिली तो हरकंप मच गया..राजपूतों के इलाके में तीन राजपूत खुलेआम मार दिए गए थे,माहौल खूब गरम हो गया था और देवेंद्र को लगा कि अगर जान बचानी है तो मोतिहारी छोड़ना पड़ेगा..जिसके बाद वो असम चला गया,असम जाकर वो उल्फा उग्रवादियों के संपर्क में आ गया.. इधर अभय सिंह के भाई अजय सिंह ने ऐलान कर दिया कि अब वे देवेंद्र दुबे ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार को खत्म कर देंगे…

हत्याकांड के 1 साल बाद 1990 में जब अभय सिंह की बरसी थी ठीक उसी दिन अजय सिंह ने देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) के भाई भूपेंद्र दुबे पर हमला कर दिया… भूपेंद्र दुबे पैसे से वकील थे लेकिन वह जानते थे कि उन पर खतरा है, तो उन्होंने अपने साथ कुछ हथियारबंद लोगों को रखना शुरू कर दिया था.. अजय सिंह ने जैसे ही हमला किया तो एक जबरदस्त मुठभेड़ हुई लेकिन इस हमले में अजय सिंह ही मारा गया और देवेंद्र दुबे के भाई बाल बाल बच गए.. इसके बाद तो दुबे भाइयों का खौफ मोतिहारी में फैल गया..

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‘सूरजभान और शिव प्रकाश शुक्ल से दोस्ती’

देवेंद्र असम में रह ही रहा था कि देश में चंद्रशेखर की सरकार बनी और उन्होंने असम के मुख्यमंत्री प्रफुल कुमार महंता पर उल्फा उग्रवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए वहां की सरकार निरस्त कर दी… असम में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और केंद्रीय बालों को असम भेजा गया ताकि वे उल्फा के उग्रवादियों को समाप्त कर सकें…देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) असम छोड़ने के फिराक में ही था कि उसे साल 1991 के फरवरी में असम के सुप्रसिद्ध कामाख्या मंदिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उसे बिहार लाया गया जहां उसके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए गए थे..

बिहार आते ही देवेंद्र (Devendra Dubey) की मोतिहारी में वापसी हुई और उसे मोतिहारी जेल भेज दिया गया..इधर मोतिहारी में पहले से ही उसका खौफ था..फिर से उसके लोग इलाके में एक्टिव हो गए जिनको देवेंद्र जेल से ही गाइड किया करता था,जेल में रहते ही देवेंद्र की दोस्ती सूरजभान और शिव प्रकाश शुक्ल से भी हुई..

‘राजपूत vs ब्राह्मण : 5 साल के बच्चे का अपहरण और मर्डर’

जेल से ही वसूली चल रही थी कि साल 1993 में मोतिहारी में राजपूत समाज से आने वाले डॉ लाल बाबू के 5 साल के बेटे का अपहरण हो गया और बच्चे को छोड़ने के लिए पैसे की डिमांड रखी गई,पुलिस कुछ कर नहीं रही थी इसीलिए डॉ ने वह पैसे दुबे को भेजवा दिया,बकायदे पैसे लेने के बाद भी इन्होंने बच्चों को नहीं छोड़ा और करीब 3 महीने बाद पता चला की दुबे के दो आदमियों ने बच्चों को मार कर लाश गंडक नदी में बहा दी, और ये खुलासा तब हुआ जब हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार और प्रो० उमा शंकर सिंह ने अपने बलबूते छानबीन की और अपहरण से हत्या तक की कहानी अखबार में छाप दी

और तब पता चला देवेंद्र दुब गैंग के 2 लोग नवल यादव और मुन्नी यादव ने ये सारा खेल किया था,चुकी डॉक्टर साहब राजपूत समाज से आते थे तो एक बार फिर मोतिहारी में राजपूत vs ब्राह्मण शुरू हो गया. बाद में कोर्ट पेशी के दौरान जब एक बार देवेंद्र से पत्रकार उमा शंकर सिंह की मुलाकात हुई तो देवेंद्र ने उन्हें खुलेआम गुडई अंदाज में कहा: का हो उमाशंकर, बड़का काबिल बनल बाड़ा..और फिर कुछ दिन बाद ही देवेंद्र के लोगों ने उनके घर पर बमबाजी भी की..लेकिन उनकी जान बच गई..हालाकि बमबाजी करने वाले लोगों पर भी आमलोगों ने हमला किया जिससे वो घायल हो गए..

‘एसपी का धमकी : मै वो कोबरा हूँ जो डसेगा तो पता भी नहीं चलेगा’

तब मोतिहारी के नए एसपी के तौर पर अनुराग गुप्ता तैनात हुए थे,उन्होंने उमा शंकर सिंह से मुलाकात की और इस मुलाकात के बाद उन्होंने देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) का साम्राज्य खत्म करने की ठानी…जिसके बाद बमबाजी करने वाले अपराधी जो लोगों की मार से घायल हो गया थे,अनुराग गुप्ता उनके पास पहुंचते हैं और कहते हैं लगता है लोगों ने खूब मारा है तुमको,पानी पिएगा…उन्हें पानी पीने के लिए दिया गया लेकिन जैसे ही उन्होंने पानी पीने के लिए मुंह खोला ..वहां खड़े पुलिसवालों ने उनके मुंह में गोली ठूंसकर मार देते हैं।

हालाकि इन सब के बाद भी देवेंद्र के आदेश पर कई लोगों का अपहरण हुआ और उनसे मनमाना पैसा वसूला गया.. और वसूली से जो भी पैसा आया उसने अपने लोगों में बांट दिया जिससे वो लोगों के लिए एक मसीहा बन गया..और लोगों में खूब उसकी लोकप्रियता भी बढ़ गई..और जब भी देवेंद्र कोर्ट पेशी के लिए आता तो सैकड़ों लोग उसके स्वागत में खड़े रहते, इधर देवेंद्र (Devendra Dubey) जेल में ही था की मोतिहारी के इस इलाके में राजपूतों के तरफ से विनोद सिंह नामक एक राजपूत का दबदबा बढ़ने लगा और विनोद का भी पहला निशाना देवेंद्र ही था..

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‘देवेन्द्र के 2 दुश्मन’

देवेंद्र के अब दो दुश्मन हो चुके थे.. एसपी अनुराग गुप्ता और विनोद सिंह..1993 दिसंबर में जैसे ही देवेंद्र दुबे को कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया तो कुछ लोगों ने कोर्ट में ही बमबाजी कर दी..निशाने पर देवेंद्र ही था लेकिन वो बच गया.. और एक बार तो खुद एसपी अनुराग गुप्ता ने देवेंद्र को जेल में जाकर ही धमका दिया था और कहा था कि मैं वो कोबरा हुं जो डसेगा तो पता भी नहीं चलेगा..लेकिन देवेंद्र (Devendra Dubey) मुस्कुराता रहा. 1994 में फिर देवेंद्र को कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया ..कोर्ट परिसर में देवेंद्र पर गोली चल गई, जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोली चलाने वाले को एनकाउंटर में मार गिराया..

देवेंद्र की जान तो नहीं गई पर वह घायल हो गया, बाद में ये आरोप पुलिस वालों पर ही लगा कि उन्होंने जानबूझकर यह गोली देवेंद्र पर चलवाई थी और चुकी पुलिस का भंडाफोड़ ना हो इसीलिए जवाबी कार्रवाई में गोली चलाने वाले को भी मार गिराया गया..

देवेंद्र(Devendra Dubey) घायल हो गया और उसे इलाज के लिए मोतिहारी सदर अस्पताल लाया गया..लेकिन दुबे के लोगों को डर था कि अगर देवेंद्र(Devendra Dubey) का इलाज मोतिहारी में चला तो किसी वक्त भी उसकी जान जा सकती है इसलिए उसके समर्थकों ने दुबे का इलाज पटना में इलाज करवाने की मांग रखी.. पुलिस इसके लिए तैयार नहीं थी लेकिन दुबे के समर्थक इतना उग्र हो चुके थे कि अस्पताल प्रशासन ने दुबे को पटना रेफर कर दिया। दुबे का इलाज चला और उसके ठीक होते ही उसे फिर जेल शिफ्ट कर दिया..

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‘नीतीश कुमार पलट गए देवेन्द्र दुबे के साथ’

उन दिनों लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती खूब मशहूर हुआ करती थी तभी आया साल 1995 , बिहार में विधानसभा का चुनाव होना था.. और इस चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार के रास्ते अलग हो गए.. लालू यादव अपनी बनाई हुई पार्टी आरजेडी से चुनाव लड़ रहे थे उधर नीतीश कुमार ने जोर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बनाई और उनकी पार्टी भी विधानसभा चुनाव लड़ रही थी.. नीतीश कुमार को किसी भी प्रकार अपनी पार्टी आगे ले जानी थी और इसलिए उन्होंने देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) की लोकप्रियता को देखते हुए समता पार्टी से उसे विधायकी की लड़ने का टिकट थमा दिया..

देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) एक बड़ा अपराधी था और उस समय जेल में भी था,और इसीलिए एक अपराधी को पार्टी ने टिकट कैसे दे दिया इसे लेकर विपक्षियों ने खूब निशाना साधा… नीतीश कुमार को लगा दाव उल्टा पड़ सकता है इसलिए उन्होंने देवेंद्र दुबे का समर्थन करने से मना कर दिया हालांकि तब तक देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) समता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नामांकन भर चुका था इसीलिए समर्थन वापस लेने के बाद भी देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) ने समता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ा..

इधर नीतीश कुमार ने आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपल्स पार्टी के एक कैंडिडेट अजीत द्विवेदी को समर्थन दे दिया..चुनाव हुआ,लालू यादव की सरकार आई लेकिन नीतीश कुमार के समर्थन वापस लेने के बाद भी दुबे(Devendra Dubey) चुनाव जीत गया…लेकिन फिर भी नीतीश कुमार ने उन्हें नहीं अपनाया..

‘देवेन्द्र दुबे की मुश्किलें कम होने लगी’

देवेंद्र दुबे के विधायक बनते ही उसके रास्ते के कांटे हटने लगे,और उसे बेल भी मिल गया..इधर एसपी अनुराग गुप्ता को इस जीत से बहुत धक्का लगा,और एक बार तो उनकी पत्नी की रेकी भी की गई थी और कुछ दिनों के बाद उनका ट्रांसफर हो गया और शहाब अख्तर मोतिहारी के नए एसपी बने.. देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) का एक दुश्मन तो रास्ते से हट गया लेकिन विनोद सिंह अभी भी जिंदा थे..विनोद सिंह को खत्म करने के लिए यूपी से शिव प्रकाश शुक्ल के गैंग से लोगों को हायर किया गया..

ये समय था 1997 का सितंबर महीना, यूपी से आए तमाम गैंगस्टर को हथियार सप्लाई करवाया गया लेकिन दिक्कत ये हुई की कन्फ्यूजन में विनोद सिंह को मारने के बदले गलती से विनोद सिंह के बड़े भाई प्रमोद सिंह की हत्या कर दी गई.. क्योंकि दोनों भाई के शक्ल एक जैसे ही मिलते थे.. देवेंद्र दुबे (Devendra Dubey) का प्लान तो फ्लॉप हो गया लेकिन अब विनोद सिंह और खतरनाक हो गए…विनोद सिंह ने देवेंद्र के सहयोगी सूरजभान सिंह के एक दुश्मन बृज बिहारी प्रसाद जो बिहार में ऊर्जा मंत्री भी बनाए गए थे, उनसे दोस्ती कर ली..

बृज बिहारी लालू के बेहद करीबी भी थे..विनोद सिंह ने ब्रज बिहारी प्रसाद या फिर उनकी पत्नी को 1998 का लोकसभा चुनाव लड़ने का सुझाव दिया, लालू यादव से टिकट देने के लिए बात भी हुई.. लाल यादव चुकी खुद देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) से परेशान थे तो उन्होंने बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी को लोकसभा का टिकट दे दिया। दुबे को लगा कि अगर रमा देवी चुनाव जीत गई तो उनका विरोधी ताकतवर हो जायेगा..

रमा देवी और बृज बिहारी प्रसाद

‘अंधाधुंध फायरिंग के साथ देवेन्द्र दुबे का अध्याय समाप्त’

इसलिए विधायक होते हुए भी उसने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया और समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव में उतर गया.. बीजेपी ने भी उस समय राधा मोहन सिंह को मोतिहारी के उस सीट से उतारा था.. और इसी बीच 22 फरवरी 1998 को चुनाव की तारिख तय की गई. चुनाव हुआ और उसी दिन शाम जब वोटिंग खत्म हुई तो देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) चुनाव का हाल-चाल लेने अपनी अरमदा गाड़ी से राजन तिवारी और कुछ लोगों के साथ क्षेत्र में निकला,

तभी उसे पता चला कि इलेक्शन कमीशन ने कुछ बूथ पर वैलेट पेपर लूट पाट की खबर के आधार पर कुछ केंद्रों पर फिर से चुनाव की घोषणा कर दी..और ये वो सीट थी जहां से दुबे को अच्छा बहुमत मिलने की आशंका थी..दुबे लौटते हुए सुबोध पांडे से मिलने के लिए गया जो दुबे का एक खास आदमी था. देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) की गाड़ी जैसे ही सुबोध पांडे के घर के बाहर लगी, उसने राजन तिवारी से कहा कि जाकर सुबोध पांडे को बुलाकर लाओ.. जैसे ही राजन तिवारी गाड़ी से उतरकर सुबोध पांडे के दरवाजे तक पहुंचा इधर 3-4 सुमो गाड़ी आकर खड़ी हुई जिससे ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई..

इसी फायरिंग में देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) अपने साथियों के साथ मारा गया। हालाकि राजन तिवारी की जान बच गई..कहा जाता है कि ये फायरिंग विनोद सिंह के आदमी ने की थी और खुद विनोद सिंह भी उसी सुमो गाड़ी में मौजूद था..देवेंद्र दुबे की मौत के बाद बिहार में अंडरवर्ल्ड का समीकरण ही बदल गया और कहा जाता है कि जब दुबे का अंतिम संस्कार करने के लिए ले जाया जा रहा था तो उसमे हजारों लोग इस यात्रा के हिस्सा बने थे और ये सब देवेंद्र दुबे के समर्थक थे..

जब उसकी लाश जल रही थी तभी देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) के भांजे ने ऐलान किया था कि वो अपने मामू की मौत का बदला लेगा..तो ये थी पूरी कहानी देवेंद्र दुबे(Devendra Dubey) की,जो बदले की आग में बिहार का सबसे बड़ा गैंगस्टर बन गया।

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